Monday, February 22, 2010

मानवता एवम मानवाधिकार

हमारे देश में मानवाधिकार का स्वरुप अलग ही है , हमारे देश में मानवाधिकार उसे देने की बात
कही जाती है जो मानव है ही नहीं । क्या ये सही है?
अर्थात आज हम बात कर रहे हैं उन आतंकवादियों की जो किसी भी बेगुनाह मासूमों को मरने में
ज़रा भी नहीं सोचते , मासूमों को अनाथ करने में उनका हृदय नहीं भरता ,हमारी माँ-बहनों को
अपमानित करने में किंचित मात्र भी लाज नहीं आती उनको ,और हम उन्ही के लिए मानवाधिकार
की बात करते हैं, क्या ये सही है ?
मेरे विचार से यदि कोई भी व्यक्ति , चाहे वो किसी भी समाज से सम्बन्ध रखता हो , चाहे वो हिन्दू
हो,मुस्लमान हो या सिख हो -
उपरोक्त कृत्य करता है तो वो मानव की संज्ञा में नहीं आता, और जो मानव है ही नहीं तो उसके
कौनसे मानवाधिकार की हम बात करते हैं?
किन्तु वाह रे हमारा समाज और वाह रे हमारे मानवाधिकार के संरक्षकगन की हम आज सिर्फ उन्ही
लोगों के मानवाधिकार की बात करते हैं ।
क्यों?
क्यों?
आज हम मुंबई बम कांड के मुख्य अभियुक्त को ही ले लें , आज उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जा
रहा है जैसे वो भारत वर्ष का दामाद हो , उसे हाथ के छाले की तरह रखा जा रहा है , और उसपर भी वो
कहता है की उसे यहाँ खतरा है, अरे कोई उससे जा के ये कहे की उसका इतना ख्याल तो उसकी माँ
भी नहीं रखती होगी जितना ख्याल हमारी सरकार उसका रख रही है।
हम उसके द्वारा किये गए कृत्य के लिए उसे दंड क्यों नहीं दे पा रहे अभी तक? हमारी सरकार किस चीज़
का इंतज़ार कर रही है?
शायद इसका, की कब कोई आतंकवादी संगठन अपने और साथियों को भेजे और किसी हवाई जहाज़
को अपने शिकंजे में लेते हुए उसके यात्रियों की जान का सौदा अपने आतंकवादी साथी की रिहाई से
करें।
आज यदि कोई कही आतंकी घटना होती है तो कहा जाता है की उस आतंकवादी संगठन ने इसकी ज़िम्मेदारी
ली है या उस आतंकवादी संगठन ने इस घटना की ज़िम्मेदारी ली है।
अरे , क्या हमारी सेना इतनी कमज़ोर है की सीना जोरी करके कहने वाले इन आतंकवादियों को समाप्त नहीं कर सकती?ऐसे लोगों का समूल नष्ट कर देना चाहिए।
अरे ऐसे लोगों के लिए कौनसी मानवता और कौनसा मानवाधिकार,
ऐसे लोगों को तो देखते ही गोली मार देनी चाहिए.और जब ऐसा होने लगेगा तब अपने आप ही कोई ऐसे
कृत्य करने से पहले अपनी मौत को सोचेगा और कभी ऐसा काम नहीं करेगा।
उसके बाद हमारे देश व समाज में सिर्फ मानव ही रहेंगे, और हमारा भारत धर्मं निरपेक्ष राष्ट्र है अतः हमारा
राष्ट्रीय समाज सिर्फ और सिर्फ मानवों का होगा और प्रत्येक को मानवाधिकार स्वतः ही प्राप्त हो जायेंगे,
क्योंकि उनका हनन करने वाला कोई होगा ही नहीं।
एक सम्रध, निडर व मानवीय समाज की कामना के साथ
एक भारतीय नागरिक

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