Tuesday, June 8, 2010

मेरा भारत मेरा देश , कहने को कितने भेष

मेरा भारत मेरा देश

अखंड की की थी कामना , और खुद ही किये खंडित प्रदेश,

मेरा भारत मेरा देश

जन जन में प्रफुल्लित कामना , लेकिन दासिता का ये वेश ,

मेरा भारत मेरा देश

संस्कृति हमारी निम्नतर हुई,समक्ष पश्चिमी के देख,

मेरा भारत मेरा देश

अंग्रेजी के पीछे छुपी मेरी भाषा हिंदी देख,

मेरा भारत मेरा फ्देश

पहनावा तन ढकने का था, हुआ अब उसमे अक्षम देख,

मेरा भारत मेरा देश

अहिंसा का प्रतीक था ये,पर घर घर में अब हिंसा देख,

मेरा भारत मेरा देश

खुद्दारी की मिसाल था ये, हुआ अब भिख्मंग्गा देख,

मेरा भारत मेरा देश

मेरा भारत मेरा देश

Wednesday, February 24, 2010

बाल श्रम बनाम राजनीति,बाल श्रमिक बनाम - भूख

आज हम देखते हैं की बाल श्रम को लेकर हमारे कुछ राजनितिक दल या कुछ समाज सेवी संस्थाएं
और हाँ कुछ हद तक प्रशासन भी बहुत सजगता दिखा रहे हैं।
ये बहुत ही अच्छी बात है ,यदि कोई भी बच्चा कहीं भी काम करता हुआ दिखाई देता है तो उसे वहां से हटा लिया जाता है और उससे काम लेने वाले व्यक्ति को दण्डित करने का प्रावधान है ,
कारन बताया जाता है की ये बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं।
बिलकुल ठीक कहा ,लेकिन मेरी बात ये समझ नहीं आती की क्या सिर्फ उसको काम से हटाने से हमारे देश का भविष्य सुद्रढ़ व सर्वोत्तम हो जायेगा?
कोई भी बच्चा अपनी पसंद से काम नहीं करता चाहे वो किसी सम्पन्न परिवार का हो या किसी आभावों से ग्रसित किसी परिवार का।
किन्तु हमारे देश के ये राजनितिक दल और स्वयंसेवी संस्थाएं , सिर्फ बच्चों को काम से हटवाने भर को अपना बहुत बड़ा सामाजिक कार्य मानते हैं और अपने आप ही अपनी पीठ ठोकते हैं की हमने देश का भविष्य बर्बाद होने से बचा लिया।
और रही सही कसर पत्रकार लोग पूरी कर देते हैं उनके इस काम को एक बहुत बड़ी उपलब्धि का नाम देके।
क्या बच्चों को काम से हटाना ही देश के भविष्य को सुद्रढ़ करना है?
मेरे विचार से बिलकुल भी नहीं,ये सही नहीं है।
यदि स्वयंसेवी संस्थाएं वास्तव में ये काम करना चाहती हैं तो उनका काम सिर्फ बच्चों को काम से हटाने तक समाप्त नहीं हो जाता है , वरन उनका काम तो उसके बाद ही शुरू होता है यदि वो वास्तव में ही देश के भविष्य को सुद्रढ़ बनाना चाहते हैं ।
जब बच्चों को काम से हटाया जाता है तो उनको किसी ऐसे संस्थान में डाला जाये जहाँ न केवल उनके पढने लिखने का वरन उनके भोजन व रहन सहन का भी ध्यान रखा जाये ,उसके बाद उसकी जिस विषय में रोचकता हो उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अवसर प्रदान कराये जाएँ.और उसे उसके उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाये,
और जब ऐसा होगा तो हमारा राष्ट्र वाकई सम्रध ,सुद्रढ़ और विकसित होगा।
हर क्षेत्र में हमारे राष्ट्र का नाम होगा, न सिर्फ विज्ञानं में वरन खेल के क्षेत्र में व्यवसाय के क्षेत्र में,कृषि के क्षेत्र में,सामाजिक कार्य के क्षेत्र में भी नाम होगा।
किन्तु, किन्तु , किन्तु
यदि हम सिर्फ अपना कार्य सिर्फ यहीं तक समझते हुए करते हैं की हमने बच्चे को काम से विमुक्त करा दिया और हमने देश के भविष्य को बर्बाद होने से बचा लिया ,
तो ये शायद हमारी सबसे बड़ी भूल है,हमने अपने देश का भविष्य बचा नहीं लिया वरन उसे और भ्रष्टता व अपराध से परिपूर्ण बनाने में अपना सबसे बड़ा योगदान दे दिया है।
कैसे? कैसे? कैसे?
जैसा की मैंने पहले कहा था की कोई भी बच्चा अपनी मर्ज़ी से काम नहीं करता, जब तक की कोई मजबूरी उसके सामने न हो ,अर्थात उसे धन की ज़रुरत थी तभी उसने काम करना प्रारंभ किया ,और यदि हम उसको काम से हटाते हैं तो वो कुछ न कुछ ऐसा करेगा धन कमाने के लिए जो की उसे नहीं करना चाहिए, शायद उसे हम "अपराध" की संज्ञा देंगे.और जब एक बच्चा या कोई भी व्यक्ति एक बार इस अपराध की दुनिया में कदम रखता है तो उसे ये काम बहुत ही आसान लगता है धन कमाने के लिए उस काम से जो वो करना चाह रहा था और उसे वो काम करने से रोक दिया गया ।
वो अब लूट खसोट-करेगा, आने-जाने वालों की चैन गले से लूटेगा ,किसी का बैग लेके भागेगा ,या फिर रंगदारी करेगा या कुछ भी ऐसा काम करेगा जो की समाज-संगत नहीं होगा।
अब इसका दोष हम किसको देंगे ?

और अगर हम ये कहें की बच्चा इतने अच्छे संस्कार का है की वो किसी गलत काम को नहीं करता धन कमाने के लिए या ये कहें की आभावों को पूरा करने के लिए,और वो एक बार फिर उसी काम देने वाले के पास जाता है काम मांगने के लिए , तो क्या वो अब उस बच्चे से काम कराएगा?

नहीं ,क्योंकि वो पहले ही दण्डित किया गया है बाल श्रम लेने के अपराध में ।
और यदि अब वो रखता भी है तो अब पहले से कम पैसे देगा उसे, क्योंकि वो कहता है की अब में तुझे रिस्क ले कर काम दे रहा हूँ अगर पकड़ा गया तो मुझे फिर से दण्डित किया जायेगा.इस कारन से वो उस बच्चे के मेहनत के पैसे और मार लेता है,
क्योंकि में इस बात को जानता हूँ इस संसार में जादातर लोग किसी की भी मजबूरी का लाभ उठाते हैं।
तो इसलिए मेरी उन स्वयंसेवी संस्थओं से या राजनितिक दलों से ये आग्रह है की कृपया वो बच्चों की मजबूरी का लाभ किसी को उठाने न दें और बच्चों को स्वावलंबी बन्ने दें.यदि बच्चा आगे बढ़ना या वाकई पढना चाहेगा तो वो खुद बखुद ही उसका रास्ता निकाल लेगा।
और कहते हैं ;
"भूखे पेट भजन न होए गोपाला"
यदि कोई बच्चा भूखा है तो उसे आप कितना ही अच्छा ज्ञान दोगे वो उसे विश-लिप्त वाक्य ही लगेंगे।
इसलिए ऐसे बच्चों केलिए यदि आप(स्वयं सेवी संस्थाएं ,राजनितिक दल) कुछ करना चाहते हैं तो पहले उनके आभावों को समाप्त करने का प्रयास करें बाद में उन्हें स्वावलंबी बनाने की योजना पर काम करते हुए बाल श्रम को समाप्त करने का प्रयास करें।
तभी हम बाल श्रम को समाप्त कर पाएंगे। और बाल श्रमिकों को राष्ट्र के सुद्रढ़ स्तंभों के रूप में विकसित कर सकेंगे।
ये मेरे विचार हैं, शायद आप इससे सहमत हों या न हों, लेकिन ये एक सच्चाई है.
धन्यवाद्
आपका एक विशुद्ध भारतीय

Monday, February 22, 2010

मानवता एवम मानवाधिकार

हमारे देश में मानवाधिकार का स्वरुप अलग ही है , हमारे देश में मानवाधिकार उसे देने की बात
कही जाती है जो मानव है ही नहीं । क्या ये सही है?
अर्थात आज हम बात कर रहे हैं उन आतंकवादियों की जो किसी भी बेगुनाह मासूमों को मरने में
ज़रा भी नहीं सोचते , मासूमों को अनाथ करने में उनका हृदय नहीं भरता ,हमारी माँ-बहनों को
अपमानित करने में किंचित मात्र भी लाज नहीं आती उनको ,और हम उन्ही के लिए मानवाधिकार
की बात करते हैं, क्या ये सही है ?
मेरे विचार से यदि कोई भी व्यक्ति , चाहे वो किसी भी समाज से सम्बन्ध रखता हो , चाहे वो हिन्दू
हो,मुस्लमान हो या सिख हो -
उपरोक्त कृत्य करता है तो वो मानव की संज्ञा में नहीं आता, और जो मानव है ही नहीं तो उसके
कौनसे मानवाधिकार की हम बात करते हैं?
किन्तु वाह रे हमारा समाज और वाह रे हमारे मानवाधिकार के संरक्षकगन की हम आज सिर्फ उन्ही
लोगों के मानवाधिकार की बात करते हैं ।
क्यों?
क्यों?
आज हम मुंबई बम कांड के मुख्य अभियुक्त को ही ले लें , आज उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जा
रहा है जैसे वो भारत वर्ष का दामाद हो , उसे हाथ के छाले की तरह रखा जा रहा है , और उसपर भी वो
कहता है की उसे यहाँ खतरा है, अरे कोई उससे जा के ये कहे की उसका इतना ख्याल तो उसकी माँ
भी नहीं रखती होगी जितना ख्याल हमारी सरकार उसका रख रही है।
हम उसके द्वारा किये गए कृत्य के लिए उसे दंड क्यों नहीं दे पा रहे अभी तक? हमारी सरकार किस चीज़
का इंतज़ार कर रही है?
शायद इसका, की कब कोई आतंकवादी संगठन अपने और साथियों को भेजे और किसी हवाई जहाज़
को अपने शिकंजे में लेते हुए उसके यात्रियों की जान का सौदा अपने आतंकवादी साथी की रिहाई से
करें।
आज यदि कोई कही आतंकी घटना होती है तो कहा जाता है की उस आतंकवादी संगठन ने इसकी ज़िम्मेदारी
ली है या उस आतंकवादी संगठन ने इस घटना की ज़िम्मेदारी ली है।
अरे , क्या हमारी सेना इतनी कमज़ोर है की सीना जोरी करके कहने वाले इन आतंकवादियों को समाप्त नहीं कर सकती?ऐसे लोगों का समूल नष्ट कर देना चाहिए।
अरे ऐसे लोगों के लिए कौनसी मानवता और कौनसा मानवाधिकार,
ऐसे लोगों को तो देखते ही गोली मार देनी चाहिए.और जब ऐसा होने लगेगा तब अपने आप ही कोई ऐसे
कृत्य करने से पहले अपनी मौत को सोचेगा और कभी ऐसा काम नहीं करेगा।
उसके बाद हमारे देश व समाज में सिर्फ मानव ही रहेंगे, और हमारा भारत धर्मं निरपेक्ष राष्ट्र है अतः हमारा
राष्ट्रीय समाज सिर्फ और सिर्फ मानवों का होगा और प्रत्येक को मानवाधिकार स्वतः ही प्राप्त हो जायेंगे,
क्योंकि उनका हनन करने वाला कोई होगा ही नहीं।
एक सम्रध, निडर व मानवीय समाज की कामना के साथ
एक भारतीय नागरिक

Sunday, February 14, 2010

युवा और व्यसन

आज की युवा पीढ़ी व्यसनों में घिरती जा रही है।
कोई विरला ही ऐसा व्यक्ति दिखाई देता है जो किसी व्यसन से ग्रसित न हो।
आज छोटे छोटे बच्चे जो की खाने पीने व खेलने कूदने में व्यस्त होने चाहिए ,
वो आज खाने में जंक फ़ूड और पीने में शराब , सिगरेट और कई तरह के नशे
में डूबे हुए हैं। और खेल कूद के नाम पे सिर्फ कम्पयूटर के आगे बैठे रहते हैं।
क्या हम ऐसी युवा पीढ़ी से स्वस्थ व उत्कृष्ठ भारत की कामना कर सकते हैं?
जो बीज खुद ही कमज़ोर हो उससे एक स्वस्थ पेड़ की कामना करना मेरे ख्याल से
उस बीज से उम्मीद रखने वाले हम जैसे लोगों की बेवकूफी है ।
और इस बीज की कमजोरी के लिए हम खुद ज़िम्मेदार हैं
कैसे?
कैसे?
वो ऐसे के आज हमारे घरों से हमारी भारतीय संस्कृति समाप्त होती जा रही हे।
आज यदि हम अपने खान पान पे ही नज़र डालें तो पहले हमारे घरों में सुबह का नाश्ता
पूर्ण रूप से स्वस्थ्य वर्धक हुआ करता था उसमे हमारी माँ हमे दूध के साथ परांठे या
रोटियां मिलती थीं वो भी मक्खन के साथ।
आज मुझे ये कहने में कोई संकोच न होगा की अधिकतर माएं इन सब झंझटों से
बचने का प्रयास करती हैं या ये कहें के उन्हें पाश्चात्य संस्कृति इतनी भाती हे की उनकी
जीवनशेली से उनका नाश्ता करने का तरीका नक़ल कर अपने बच्चों को वही नाश्ता देती हैं
और कहते हैं मोर्डन कल्चर है ।
जब बच्चा शुरू से ही मेग्गी , बर्गर ,पिज्जा , पेप्सी जैसी चीज़ें खायेगा पीएगा तो उसका शरीर
भी वैसा ही बनेगा।
आज कल के बच्चे या तो बहुत मोटे मिलते हैं या बहुत पतले और दोनों ही रूपों में उनमे जान के
नाम पे अगर देखा जाये तो ये हालत है की अगर ज़रा सा भागने को कह दिया जाये तो उनकी जीभ
कान से बहार निकलने को तेयार रहती है।
और ऐसे भोजन के बाद रही सही कसर शराब और सिगरेट पूरा कर देते हें
आज हमे स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए सबसे पहली ज़रुरत हे निर्व्यस्नीय किशोरों की
और युवाओं को निर्व्यस्नीय बनाने का सर्वोत्तम उपाय हे
"कसरत"
यदि हम बच्चों में कसरत करने की आदत डालेंगे तो वो कभी भी किसी व्यसन की तरफ
नहीं देखेंगे क्योंकि वो ये जान जायेंगे की अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कितना पसीना बहाना पड़ता हे
और थोडा सा व्यसन करने से घंटों का परिश्रम कुछ क्षणों के मज़े के लिए मिटटी में मिल जायेगा
और जहाँ बच्चों के दिमाग में ये बात आ गयी तो वो कभी भी किसी व्यसन की तरफ देखेंगे भी नहीं ।
इसका मुझे विश्वास हे
तो आइये अपने स्वस्थ व उत्क्रष्ठ भारत व समाज के लिए
"कसरत को एक व्यसन के रूप में प्रचारित व प्रसारित करें"
धन्यवाद्
निर्व्यस्नीय व स्वस्थ भारत व समाज की कामना के साथ
एक विशुद्ध भारतीय




Sunday, December 27, 2009

जशने नया साल

सभी देशवासियों को मेरा प्रणाम व मेरी ओर से आगामी नव वर्ष की शुभ कामनाएं।
जैसा की हम देख रहे हैं की नया साल आने वाला है , और सभी ने अपने अपने स्तर पे
उसका जष्न मानाने की तेयारियां कर ली हैं ,और ये होना भी चाहिए .चूँकि यदि हम
किसी आने वाले की ख़ुशी मनाते हैं तो आने वाला भी हमे ख़ुशी देने का प्रयास करता है। तो आइये हम एक नयी ख़ुशी व नए जोश के साथ आने वाले साल (२०१०) का स्वागत करें ।
लेकिन आज कोई भी जष्न बिना "शराब "के पूरा नहीं समझा जाता ,लोगों का जादातर ये मन्ना है की बिना शराब के जष्न ठीक वैसे ही है जैसे "बिना नमक के रोटी।"
आज शराब हमारे सामाजिक जीवन (सोशल लाइफ) का हिस्सा बन गयी है। ये मै नहीं कह रहा,
ये सब हो रहा है। चूँकि आज कोई भी पार्टी देख लीजिये उसमे शराब होना ज़रूरी सा हो गया है।
न केवल उस पार्टी में शराब का होना ज़रूरी हो गया है बल्कि उसे पीना भी ज़रूरी हो गया है।
क्योंकि यदि किसी पार्टी में शराब चल रही हो और आप के हाथ में शराब का प्याला न हो तो आप को सामाजिक नहीं समझा जाता है।
आप के लिए कहा जाता है की आप को समाज में रहना नहीं आता और न ही आप को पार्टी में शिरकत करनी आती है।
यदि आप शराब की कमियां गिनाते हो तो सुनने वाला कहता है की अरे यार अच्छी तो मुझे भी नहीं लगती पैर क्या करू मजबूरी में पीनी पढ़ जाती है.कारन बताया जाता है की यार बॉस के साथ साथ हूँ तो अगर बॉस ने प्याला मेरी तरफ किया और मैंने नहीं लिया तो उन्हें बुरा लगेगा और बॉस को अगर बुरा लगा तो पता ही है क्या होगा? कुछ ऐसा ही तर्क दिया जाता है।
लेकिन अगर हम ईमानदारी से सोचें क्या ये सब बहाने नहीं है?
हाँ ,चूँकि ये हमारी अंदर से ही इच्छा होती है पीने की और हम दूसरों पे उसकी ज़िम्मेदारी दाल कर अपनी इच्छा मजबूरी के नाम पे पूरी कर लेते हैं।
मै इतना जनता हूँ की अगर आप की इच्छा कुछ न खाने या न पीने की है तो कोई भी आपको ज़बरदस्ती वो नहीं खिला पिला सकता .और यदि आप वाकई ईमानदारी से उसके लिए मना करते है तो तो वो आपकी निर्व्यस्नियता को नहीं तोड़ेगा ।और शराब न पीना आपकी कोई कमी नहीं बल्कि निर्व्यस्नियता में दृढ संकल्पता को दर्शाता है।
शराब एक मादक पेय पदार्थ है और कोई भी मादक पदार्थ सेहत के लिए फायदेमंद नहीं होता।
चूँकि वो पदार्थ जिससे आप खुद के भी नियंत्रण में न रहें वो फायदेमंद कैसे हो सकता है?
चूँकि वो पदार्थ जिससे आप की वाणी आप के नियंत्रण में न रहे वो फायदेमंद कैसे हो सकता हे?
चूँकि वो पदार्थ जिससे आप अपने बड़ों का आदर सत्कार भूल जाएँ वो फायदेमंद कैसे हो सकता है?
चूँकि वो पदार्थ जिससे आप को अपने ही शारीरिक व मानसिक नुकसान का बोध न हो,वो फायदेमंद कैसे हो सकता है?
और जब किसी चीज़ से हमे कोई फायदा ही नहीं है तो हम उसे करें ही क्यों ?
तो आओ हम नए साल के शुरू होने से पहले ही उसके जष्न को बिना शराब का प्रयोग करके मनाते हुए अपना आगामी जीवन निर्व्यस्नीय बनाने का दृढ संकल्प करें।
धन्यवाद्
आप सब के सहयोग से "निर्व्यसन " व "स्वस्थ" भारत की कामना के साथ
आपका
विक्की


Thursday, December 24, 2009

दासिता एक अभिशाप है

`किसी ने ठीक ही कहा है

Tuesday, December 22, 2009

mera bharat mahan

मेरा देश भारत बहुत ही महान है । मेरा देश शायद इकलोता एसा देश होगा जिसमे अपनी ही राष्ट्र भाषा हिंदी बोलने में लोग शर्म महसूस करते हैं. आज चाहे हमे आजाद हुए ६३ साल हो गए हों लेकिन आज भी हम मानसिक रूप से तो गुलाम के गुलाम ही हैं।
आज हम अपने मालिक रह चुके अंग्रेजों की भाषा में बोलते हैं तो गर्व महसूस करते हैं और अपने आप को बहुत ही पढ़ा लिखा महसूस करते हैं, और वहीँ अगर कोई हमसे हिंदी में बात करता हे किसी ऐसी जगह जहाँ सब लोग अंग्रेजी में बात कर रहे हों तो हम उसे इसी हीनता की दृष्टि से देखते हैं की जैसे वो अभी अभी किसी गटर से निकल के आया हो।
अपने ही राष्ट्र में अपनी ही राष्ट्र भाषा "हिंदी" से ऐसा सोतेला व्यव्हार क्यों?
आज हमारे प्रधान मंत्री जी कोई भाषण देते हैं तो सिर्फ जादातर अंग्रेजी भाषा में ही क्यों होता हे, हिंदी में क्यों नहीं?
क्या प्रधान मंत्री जी को हमारी अपनी राष्ट्र भाषा नहीं आती?
आज संसद भवन में जो सवाल जवाब होते हैं वो जादातर अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं, हिंदी में क्यों नहीं?
क्या हमारी अपनी मात्र व राष्ट्र भाषा हमारे विचारों का आदान प्रदान करने में असमर्थ हे?
अगर ऐसा है तो जो हमारे आका रह चुके अंग्रेज हैं वो आज हमारी भाषा हिंदी क्यों सीख रहे हैं?
क्योंकि हमारी भाषा अपने आप में संपन्न है।
इससे मीठी कोई भाषा नहीं है।
इससे सहज कोई भाषा नहीं है।
इससे सुसंस्कृत कोई भाषा नहीं है।
इससे शालीन कोई भाषा नहीं है।
इससे प्यारी कोई भाषा नहीं हे।
हमारी भाषा वो भाषा है जिसकी कथनी व करनी में कोई अंतर नहीं है
हम जो बोलते हैं वही लिखते हैं,किन्तु हमारे जादातर देशवासियों की प्यारी भाषा अंग्रेजी की तो कथनी व करनी दोनों में अंतर होता है जो वो बोलते हैं वो लिखते नहीं हैं और जो लिखते हैं वो बोलते नहीं हैं।
और हम उसी भाषा के आधीन हो कर अपनी भाषा को भूलते जा रहे हैं, ऐसा क्यों?
जब हमारे देश का सबसे बड़ा मंत्री, प्रधान मंत्री - अपनी राष्ट्र भाषा में न बोलते हुए गुलाम भाषा में बोलते हैं तो हम दुसरे देशवासियों से क्या उम्मीद लगायें?
आज हमारी सेना में भरति होने के लिए प्रशिक्षण ले रहे जवान जब अपना प्रशिक्षण पूरा करते हैं तो उन्हें भी शपथ अंग्रेजी में दिलाई जाती है,देश को गुलाम होने से बचने के लिए व उसकी रक्षा करने की शपथ, और वो गुलाम भाषा में, ऐसा क्यों?
ये सवाल मुझे बहुत कसोट ते रहते हैं, क्या कोई बताएगा की
ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों?
सवाल के जवाब के इंतज़ार में , राष्ट्र व राष्ट्र भाषा के हित में
विक्की
एक भारतीय नागरिक।
जय हिंद
जय भारत